आम तौर पर कहा जाता है कि एक असफल खिलाड़ी अच्छा कोच साबित होता है। लेकिन यह कहावत भारतीय बैडमिंटन के द्रोणाचार्य पुलेला गोपीचंद पर खरी नहीं उतरती है। साल 2001 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप जीतने वाले पुलेला गोपीचंद एक सफल बैडमिंटन खिलाड़ी रहे हैं लेकिन बतौर कोच वह ज्यादा सफल हो रहे हैं। लगातार दो ओलंपिक खेलों में देश के लिए पदक जीतने वाले खिलाड़ियों में एक चीज कॉमन है कि दोनों के कोच पुलेला गोपीचंद ही थे।
गोपीचंद ने पिछले एक दशक में भारतीय बैडमिंटन का कायाकल्प कर दिया है। लंदन ओलंपिक में 5 खिलाड़ियों ने ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था जिनकी संख्या रियो में बढ़कर 7 हो गई। लंदन में भी भारतीय खिलाड़ियों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया वहां साइना ने कांस्य जीता। रियो में पदक चांदी का हो गया और देश को सिंधू के रुप में एक नया सितारा मिल गया।
पुरुषों में लंदन में पी कश्यप क्वार्टर फाइनल में पंहुचे थे, वहीं इस बार विश्व के नंबर 9 खिलाड़ी के श्रीकांत क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे। वह विश्व नंबर एक खिलाड़ी लिन डेन से हार गए लेकिन उन्होंने एक सेट जीतकर यह साबित कर दिया कि चीन की दीवार अब भारतीयों के लिए बाधा नहीं रह गई है। यही बात सिंधू ने भी विश्व की नंबर दो खिलाड़ी को हराकर साबित की।
इसका सीधा सा मतलब यह है कि गोपीचंद खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए तकनीकी और शारीरिक रूप के साथ मानसिक रूप से भी तैयार कर रहे हैं। दूसरे खेलों में यही मानसिक कमजोरी पदकों और खिलाड़ियों के बीच की सबसे बड़ी बाधा बन रही है।
वर्तमान में जो खिलाड़ी बैडमिंटन में अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं वो गोपीचंद के एक दशक में तैयार की गई फसल है। और इन खिलाड़ियों के बाद भी युवा खिलाड़ियों की एक नई खेप बनकर तैयार है जिसका जीता जागता उदाहरण सिरिल वर्मा हैं जो इस साल जनवरी में जूनियर विश्व रैंकिंग में पहले स्थान पर पहुंचे।
युगल में भारतीय खिलाड़ियों को तैयार करने के लिए हाल ही में मलेशिया के किम टैन हर को पांच साल के लिए अनुबंधित किया गया है, उनका चयन भी चीफ नेशनल कोच पुलेला गोपीचंद की सलाह पर ही किया गया है। किम टैन दक्षिण कोरिया, ब्रिटेन और मलेशिया के कोच रह चुके हैं। जो कमी गोपीचंद की कोचिंग में युगल के लिए रह गई थी उसे वह पूरी करेंगे।
मतलब सीधी तरह साफ है आपके पास आज,कल और उससे भी आगे के लिए योजनाएं हैं, जिस पर गोपीचंद बड़ी शिद्दत के साथ काम कर रहे हैं। वह बड़े अनुशासन वाले कोच माने जाते हैं और खिलाड़ियों को अनुशासित जीवन शैली अपनाने की प्रेरणा देते हैं। वह कोर्ट में खिलाड़ियों से पहले पहुंचते हैं और सबसे आखिर में कोर्ट से वापस जाते हैं। यह सीधी तरह उनके खेल के प्रति समर्मण को बताता है।