कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें जिंदगी में रंगीनियां ही पसंद होती हैं, ऐसे ही एक खिलाड़ी हैं रोहित शर्मा। रंगीन कपड़े पहनते ही उनका बल्ला मैदान पर आग उगलने लगता है लेकिन जैसे ही वह सफेद जर्सी में आते हैं उनके खेल का रंग ही फीका पड़ जाता है। सीमित ओवर क्रिकेट का सुपरमैन अचानक से एक औसत दर्जे का खिलाड़ी नज़र आने लगता है। इस बात का नमूना कानपुर के ग्रीनपार्क स्टेडियम में एक बार फिर न्यूजीलैंड के खिलाफ देखने को मिला। जब रोहित मजह 35 रन बनाकर पवेलियन लौट गए।
तमाम अटकलों के बीच चयनकर्ताओं ने रोहित को एक बार फिर न्यूजीलैंड के खिलाफ टेस्ट टीम में शामिल किया। गौतम गंभीर के प्रदर्शन को नजरअंदाज करते हुए रोहित शर्मा और शिखर धवन को टीम में जगह दी गई, लेकिन रोहित एक बार फिर चयनकर्ताओं के विश्वास पर खरे नहीं उतरे। कानपुर में मजह 35 रन बनाकर सेंटनर की गेंद पर जिस तरह रोहित आउट हुए वह बेहद निराश करने वाला था।
चयनकर्ताओं द्वारा रोहित को शायद इसलिए टीम में शामिल किया क्योंकि घर में वह ज्यादा आक्रामक खिलाड़ी हैं। लेकिन घरेलू सरजमीं पर रोहित ने पिछले दो साल में कानपुर टेस्ट को मिलाकर तीन टेस्ट खेले हैं जिसकी पांच पारियों वह केवल 61 रन बना सके। रोहित ने टेस्ट में आखिरी अर्धशतक पिछले साल अगस्त में श्रीलंका के खिलाफ कोलंबो में लगाया था। उस मैच की दूसरी पारी में रोहित ने 50 रन बनाए थे। पिछले एक साल में रोहित ने पांच टेस्ट मैच खेले हैं जिसकी 7 पारियों में वह 15.85 की औसत से मजह 111 रन बना सके हैं। ये आंकड़े उनके जैसे विश्वस्तरीय खिलाड़ी के लिए बेहद खराब हैं।
साल 2013 में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट डेब्यु करने वाले रोहित ने पहले दो टेस्ट मैचों में 177 और 111* रनों की पारी खेली थी। लेकिन उसके बाद से उनका बल्ला खामोश ही रहा है। रोहित में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है लेकिन वह अपनी प्रतिभा को टेस्ट रनों में परिवर्तित नहीं कर पाए हैं। इसी वजह से 2007 से एकदिवसीय टीम में जगह बनाने के बावजूद उन्हें 6 साल बात साल 2013 में सचिन तेंदुलकर की विदाई सीरीज में वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट पदार्पण करने का मौका मिल सका। रोहित ने साल 2007 में आयरलैंड के खिलाफ अपना पहला वनडे मैच खेला था। इसके तीन महीने बाद उन्होंने 2007 के टी-20 वर्ल्डकप में इंग्लैंड के खिलाफ टी-20 डेब्यू किया था।
रोहित शर्मा ने कानपुर टेस्ट की पहली पारी तक 19 टेस्ट खेले हैं, जिसकी 32 पारियों में 2 बार नाबाद रहते हुए उन्होंने 32.70 की औसत से 981 रन बनाए हैं। जिसमें 2 शतक और 4 अर्धशतक शामिल हैं। वनडे में दो दोहरे शतक जड़ने वाला यह खिलाड़ी पिछले 16 टेस्ट मैचों में एक भी शतक नहीं जड़ सका है। इस दौरान रोहित ने केवल चार अर्धशतक लगा पाए हैं।
कानपुर टेस्ट से पहले वह दिल्ली में न्यूजीलैंड के ही खिलाफ खेले गए अभ्यास मैच में नाकाम रहे। इससे पहले ग्रेटर नोएडा में खेले गए दिलीप ट्रॉफी के फाइनल में भी उनके बल्ले का जादू नहीं चला, ऐसे में चयनकर्ता उनपर इतनी मेहरबानी और विश्वास क्यों दिखा रहे हैं यह समझ से परे है। यह रोहित के लिए भी खेद का विषय है कि वह एक दशक लंबे अंतरराष्ट्रीय करियर में वह खुद को बतौर टेस्ट क्रिकेटर स्थापित नहीं कर पाए हैं। रोहित भी युवराज सिंह की तरह सीमित ओवर के स्पेशलिस्ट खिलाड़ी बनकर रह गए हैं।
यदि रोहित शर्मा को खुद को टेस्ट क्रिकेटर के रूप में स्थापित करना है तो उन्हें डेविड वार्नर से खिलाड़ी से सीख लेनी होगी, जिन्होंने अपनी बैटिंग स्टाइल में बदलाव किए बगैर खुद को एक टेस्ट क्रिकेटर के रूप में स्थापित किया है और कुछ ही समय में ऑस्ट्रेलियाई टीम की रीढ़ बन गए हैं। यदि रोहित ऐसा करने में सफल रहते हैं तो भारत को विश्व की नंबर एक टेस्ट टीम बनने से कोई नहीं रोक सकता।